मन की बात साथ-साथ
Mann ki Baat saath saath with Us President Barack Obama
(Special Edition of Mann Ki Baat)
(माननीय
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी) : मन की बात के स्पेशल कार्यक्रम में आज अमरीका
के राष्ट्रपति श्री बराक ओबामा जी हमारे साथ हैं। पिछले कुछ महीनों में मन की बात
मैं आपसे करता आया हूँ। लेकिन आज देश के भिन्न – भिन्न कोनों से बहुत से लोगों ने सवाल पूछे हैं।
लेकिन ज्यादातर
सवाल राजनीति से संबंधित हैं, विदेश नीति से
संबंधि हैं, आर्थिक नीति से
संबंधित हैं, लेकिन कुछ सवाल
वो हैं जो दिल को छूने वाले है। और मैं मानता हूँ कि आज हमें उन सवालों को स्पर्श
करने से, हम देश के कोने - कोने
में सामान्य मानव तक पहुंच पाएंगे। और इसलिए जो पत्रकार वार्ताओं में उठाए जाने
वाले सवाल हैं, या जो मीटिंगों
में चर्चा में आने वाले सवाल है, उसके बजाय जो दिल
से निकलने वाली बातें हैं, उसका अगर हम
दोहराते हैं, उसको अगर
गुनगुनाते हैं, तो एक नई ऊर्जा
मिलती है। और उस अर्थ में, मैं समझता हूँ कि
ये सवाल मेरा दृष्टि से ज्यादा अहम रखते हैं। आप लोगों को मालूम है, कुछ लोगों के मन में सवाल उठता है बराक का अर्थ
क्या है? तो मैं जरा ढूंढ़ रहा था
कि बराक का अर्थ क्या है? तो स्वाहिली
भाषा, जो कि अफ्रीकन कंट्रीज
में प्रचलित है। स्वाहिला भाषा में बराक का मतलब है, वह जिसे आशीर्वाद प्राप्त है। मैं समझता हूँ ये अपने आप
में बराक के नाम के साथ एक बहुत बड़ा तोहफा भी उनके परिवार ने उनको दिया है।
अफ्रीकन कंट्रीज
उबंतु के प्राचीन विचार का अनुकरण करती आई है। ये विचार मानवता में एकजुटता का
विचार है। और वे कहते हैं, मैं हूँ, क्योंकि हम हैं। मैं समझता हूँ सदियों का भी
अंतर है, सीमाओं का भी अंतर है,
उसके बावजूद भी वह भाव जो भारत में हम कहते हैं
– वसुधैव कुटुंबकम, वही भाव दूर - सुदूर अफ्रीका के जंगलों से भी
उगते हैं। तो ये, कितनी बड़ी
विरासत हम मानव जाति के पास है। जो हमें जोड़ती है। जब हम महात्मा गांधी की चर्चा
करते हैं तो हमें हैनरी थोरो की बात याद आती है जिनसे महात्मा गांधी डिस्ऑबिडिएंस
सीखे थे। और जब हम मार्टिन लूथर किंग की बात करते हैं या ओबार की बात करते हैं तो
उनके मुंह से भी महात्मा गांधी का आदरपूर्वक उल्लेख सुनने को मिलता है। यही
बातें हैं जो विश्व को जोड़ती हैं।
आज बराक ओबामा
हमारे साथ हैं। मैं पहले उनसे रिक्वेस्ट करूँगा कि कुछ हमें बताएं। बाद में,
जो सवाल आए हैं, वे सवाल, जो मेरे लिए सवाल
आए हैं, उसका जवाब मैं दूंगा। जो
बराक के लिए सवाल आए हैं उनका जवाब बराक देंगे। तो, मैं राष्ट्रपति श्री बराक ओबामा से निवेदन करूँगा कि वे
कुछ शब्द कहें।
(माननीय राष्ट्रपति
श्री बराक ओबामा) :नमस्ते! आपके उदारतापूर्ण शब्दों के लिए तथा इस यात्रा पर
मेरा एवं मेरी पत्नी मिशेल का जो अतुल्य अतिथि सत्कार किया गया है उसके लिए
प्रधानमंत्री मोदी, आपका धन्यवाद
तथा मैं भारत के लोगों से कहना चाहता हूँ कि आपके गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल
होने वाला पहला अमरीकी राष्ट्रपति बनकर मैं कितना सम्मानित महसूस कर रहा हूँ;
तथा मुझे बताया गया है कि यह भारत के किसी
प्रधानमंत्री तथा अमरीका के किसी राष्ट्रपति का एक साथ पहला रेडियो संबोधन है,
इस प्रकार हम थोड़े समय अनेक नया इतिहास रच रहे
हैं। अब इस महान देश के कोने - कोने से सुन रहे भारत के लोगों से मैं कहना चहता
हूँ कि आप से सीधे बात करा अद्भुत है। हम अभी - अभी चर्चा से आए हैं जिसमें हमने
माना कि भारत और संयुक्त राज्य स्वाभावितक साझेदार हैं, क्योंकि हमारे बीच बहुत सारी समानताएं हैं, हम दो महान लोकतंत्र हैं, दो नवाचारी अर्थव्यवस्थाएं हैं, दो विविधापूर्ण समाज हैं जो व्यक्तियों को
सशक्त बनाने के लिए समर्पित हैं। हम भारतीय अमरीकियों के माध्यम से एक –
दूसरे से जुड़े हैं जिनके अभी भी भारत में
परिवार हैं तथा भारत की परंपराओं का अनुसरण करते हैं। और मैं प्रधानमंत्री से कहना
चाहता हूँ कि इन दो देशों के बीच संबंध को सुदृढ़ करने के लिए आपकी निजी प्रबल
प्रतिबद्धता की बहुत प्रशंसा करता हूँ।
भयावह गरीबी को
कम करने और लोगों का जीवन स्तर ऊपर उठाने, महिलाओं को सशक्त बनाने, सबको बिजली एवं स्वच्छ ऊजा प्रदान करने तथा अवसंरचना में
एवं शिक्षा प्रणाली में निवेश करने के लिए इस देश में जिस जोश के साथ प्रधानमंत्री
मोदी प्रयास कर रहे हैं उसको लेकर संयुकत राज्य के लोग बहुत उत्साहित हैं। और इन
सभी मुद्दों पर हम साझेदार बनना चाहते हैं। क्योंकि संयुक्त् राज्य के अंदर
मैं जिन प्रयासों को बढ़ावा दे रहा हूँ उनमें से कई का उद्देश्य यह आश्वस्त
करना है कि युवाओं को सर्वोत्तम संभव शिक्षा मिले, आम लोगों को उनके श्रम के बदले में समुचित रूप से
क्षतिपूर्ति मिले, और उनको उचित
मजदूरी मिले, तथा नौकरी की
सुरक्षा हो और स्वास्थ्य देख-रेख की सुरक्षा हो। मुझे पता है कि ये उसी तरह के
मुद्दे हैं जिन पर प्रधानमंत्री मोदी यहां इतनी गहराई से ध्यान दे रहे हैं। और
मेरी समझ से इन मुद्दों में एक कॉमन थीम है। यह मुझे उसे याद करने की याद दिलाता
है जिसे गांधी जी ने कहा कि यह हमारे जीवन का मुख्य लक्ष्य होना चाहिए। और यह कि
हमें मानवता की सेवा के माध्यम से परमात्मा को ढूंढ़ने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि
परमात्मा हर किसी में है। इसलिए इन साझे मूल्यों, इन धारणाओं की वजह से मैं इस संबंध के प्रति इतना अधिक
प्रतिबद्ध हूँ। मेरा यह विश्वास है कि यदि संयुक्त राजय एवं भारत इन मूल्यों को
ध्यान में रखते हुए विश्व मंच पर एक साथ हो जाएं, तो न केवल हमारे लोगों का जीवन – स्तर बेहतर होगा, अपितु मेरी समझ से पूरी दुनिया अधिक समृद्ध और अधिक शांतिपूर्ण तथा भविष्य के
लिए अधिक सुरक्षित होगी। इसलिए, आज यहां आपके साथ
होने का मुझे यह अवसर प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री महोदय, आपका धन्यवाद करता हूँ।
(माननीय
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी) : बराक, पहला प्रश्न मुंबई से राज का है।
उनका सवाल है,
अपनी बेटियों के लिए आपके स्नेह के बारे में
सारी दुनिया जानती है। अपनी बेटियों को आप भारत के बारे में अपने अनुभव कैसे
बताएंगे? क्या आप उनके लिए कोई
खरीददारी करने की योजना बना रहे हैं?
(माननीय राष्ट्रपति
श्री बराक ओबामा) : पहली बात तो यह है कि उनकी आने की बहुत इच्छा थी। भारत के
प्रति उनका आकर्षण है, दुर्भाग्य से जब
भी मैं यहां के दौरे पर आया हूँ, उनके स्कूल होते
थे और वे स्कूल छोड़ न सकीं। और वास्तव में मेरी बड़ी बेटी मालिया के अभी हाल
में परीक्षाएं थी। वे भारत की संस्कृति और इतिहास के प्रति आकर्षित हैं, और मेरी समझ से आंशिक रूप से मेरे प्रभाव की
वजह से वे भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से काफी प्रभावित हैं तथा न केवल यहां भारत
में अहिंसा की रणनीतियों के माध्यम से महात्मा गांधी द्वारा निभाई गई भूमिका से
बहुत प्रभावित हैं अपितु इस बात से भी प्रभावित हैं कि किस तरह संयुक्त राज्य
में अहिंसक नागरिक अधिकार आंदोनल पर उसके प्रभाव से भी प्रभावित हैं। अत: जब मैं
वापस जाऊँगा तो मैं उनको बताऊँगा कि भारत उतना ही भव्य है जितना वे कल्पना करती
हैं। और मुझे पूरा यकीन है कि वे मुझ पर दबाव डालेंगी कि अगली बार जब मैं यहां आऊँ
तो उनकी भी साथ लाऊँ। यह मेरे राष्ट्रपति रहते नहीं हो सकता, परंतु इसके बाद निश्चित रूप से वे यहां आना और
घूमना चाहेंगी।
और निश्चित रूप
से मैं उनके लिए कुछ खरीददारी करूंगा। हालांकि मैं स्वयं दुकानों पर नहीं जा सकता,
इसलिए मैं अपने लिए अपनी टीम से खरीददारी
कराऊँगा। और मैं मिशेल से कुछ सलाह लूंगा क्योंकि संभवत: उनको ज्यादा पात है कि
उनका क्या पसंद होगा।
(माननीय
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी) : बराक ने कहा कि वो बेटियों को लेकर आएंगे। मेरा
आपको निमंत्रण है। राष्ट्रपति के कार्यकाल में भी आएं, या राष्ट्रपति कार्यकाल के बाद भी आएं। भारत आपका और आपकी
बेटियों का स्वागत करने के लिए इच्छुक है।
मुझे एक सवाल
पुणे सानिका दीवान जी ने पूछा है, महाराष्ट्र,
पुणे से! उन्होंने मुझे पूछा है आपने बेटी
बचाओ, बेटी पढ़ाओ मिशन शुरू
किया है। क्या उसमें भी आपने अमरीका के राष्ट्रपति ओबामा की मदद मांगी है क्या?
सानिया आपने अच्छा
सवाल पूछा है। भारत में सैक्स रेश्यू के कारण एक बहुत बड़ी चिंता सता रही है। एक
हजार लड़कों के सामने लड़किेयों की संख्या कम है। और उसका मूल कारण लड़के और
लड़की के प्रति देखने का हमारा जो रवैया है वो दोषपूण है।
राष्ट्रपति
ओबामा से मैं मदद मांगू या ना मांगू उनका जीवन ही अपने आप में एक प्रेरणा है। जिस
प्रकार से वो अपनी दो बेटियों का लालन-पालन करते हैं। जिस प्रकार से अपनी दो
बेटियों के लिए वो गर्व करते हैं।
हमारे देश में भी,
कई जगह पर जब हमें लोगों से मिलना होता है,
तो परिवार में उनको कोई बेटा नहीं है सिर्फ
बेटियां होती हैं। और इतने गौरव से बेटियों को बड़ा करते हैं, इतना गौरव देते हैं वो ही सबसे बड़ी प्रेरणा
है। मैं समझता हूँ ये प्रेरणा ही हमारी ताकत है। और आपने सवाल पूछा है तो मैं कहना
चाहूँगा कि बेटी बचाना, बेटी पढ़ाना यह
हमारा सामाजिक कर्त्तव्य है, मानवीय जिम्मेवारी
है। इसको हमें निभाना चाहिए।
बराक आपके लिए एक
प्रश्न है। दूसरा प्रश्न ई-मेल के माध्यम से राष्ट्रपति ओबामा के लिए आया है,
अहमदाबाद, गुजरात के रहने वाले डा. उमेश उपाध्याय जो डाक्टर हैं;
आपकी पत्नी मोटापे और डायबटीज जैसी स्वास्थ्य
की आधुनिक चुनौतियों से निपटने की दिशा में व्यापक सामाजिक कार्य कर रही हैं।
भारत में भी ये चुनौतियां तेजी से बढ़ रही हैं। क्या आप और प्रथम महिला, आपका कार्यकाल राष्ट्रपति के नाते समाप्त
होने के बाद, इन चुनौतियों से
निपटने के कार्य के लिए भारत आएंगे, जैसे बिल गेट्स और मिलिंडा गेट्स भारत में स्वच्छता को लेकर काम कर रहे हैं,
आप भी डायबटीज और मोटापेपन के लिए काम करेंगे
क्या?
(माननीय राष्ट्रपति
श्री बराक ओबामा) : हम मोटापा सहित कई सार्वजनिक स्वास्थ्य के व्यापक मुद्दों
पर यहां भारत में संगठनों, और सरकारी एवं
गैर सरकारी संगठनों के साथ साझेदारी करने की काफी उम्मीद कर रहे हैं। इस मुद्दे
पर मिशेल ने जो कार्य किया है उस पर मुझे बहुत गर्व है। हम मोटापे की विश्वव्यापी
महामारी देख रहे हैं, तथा कई मामलों
में यह बहुत कम आयु में शुरू हो जाता है। ओर इसका आंशिक रूप से कारण प्रोसेस्ड
फूड मात्रा में वृद्धि है, जो स्वाभावितक
रूप से तैयार नहीं होता है। बहुत सारे बच्चों के लिए इसका आंशिक कारण गतिविधि का
अभाव है। और जब वे एक बार इस रास्ते पर चल पड़ते हैं, तो यह जीवन-भर के लिए स्वास्थ्य चुनौती बन सकता है। यह
ऐसा मुद्दा हे जिन पर हम यहां भारत सहित अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काम करना चाहते
हैं। और यह वैश्विक स्वास्थ्य से जुड़ा एक बड़ा मुद्दा है। जिस पर हमें ध्यान
देने की जरूरत है। उदाहरण के लिए प्रधानमंत्री और मैंने चर्चा की कि कैसे हम
सर्वव्यापी महामारी जैसी समस्याओं से निपटने में बेहतर कार्य कैसे कर सकते हैं।
और यह आश्वस्त
करना कि हमारे पास अच्छे अलर्ट सिस्टम हों ताकि यदि इबोला या जानलेवा फ्लू वायरस
या पोलिया जैसी बीमारी पैदा होती है तो उसका शीघ्रता से पता चल सके और फिर शीघ्रता
से उपचार हो जिससे कि वह न फैले। पूरी दुनिया में सार्वजनिक स्वास्थ्य की
अवसंरचना के सुधार की जरूरत है। मेरी समझ से यहां भारत में इन मुद्दों पर ध्यान
केंद्रित करके प्रधानमंत्री एक महान कार्य कर रहे हैं और भारत के पास अनेक अन्य
देशों को सिखाने के लिए बहुत कुछ है जो संभवत: इस सार्वजनिक स्वास्यि क्षेत्र
में सुधार लाने के लिए दिशा में उतनी तेजी से आगे नहीं बढ़ रहे हैं। परंतु,
इसका हर चीज पर असर होता है क्योंकि यदि बच्चे
बीमार होंगे तो वे पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे सकते हैं और वे पीछे रह जाएंगे। जिन
देशों में ये समस्याएं हैं उन पर इसका विशाल आर्थिक प्रभाव है, और, इसलिए हम सोचते हैं कि यहां काफी प्रगति करने की जरूरत है। और मैं यह देखने के
बाद भी इस कार्य पर विचार करने की संभावनाओं को लेकर बहुत उत्साहित हूँ।
(माननीय
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी) : मुझे एक सवाल श्रीमान अर्जुन ने पूछा है। और
बड़ा रोचक सवाल है। उन्होंने पूछा है कि मैंने ह्वाइट हाउस के बाहर एक पर्यटक के
रूप में आपकी एक पुरानी फोटो देखी है। जब आप बीते दिनों सितंबर में वहां गए तो कौन
सी बात आपके दिल को छू गई?
ये बात सही है कि
मैं जब पहली बार अमरीका गया था तो ह्वाइट हाउस जाना तो हमारा नसीब में नही था। तो
ह्वाइट हाउस से दूर एक लोहे की बहुत बड़ी जाली लगी हुई है, तब, जाली के बाहर
खड़े रह करके फोटा निकाली थी। पीछे ह्वाइट हाउस दिखता है। और अब प्रधानमंत्री बन
गया तो अब वो फोटो भी पॉपुलर हो गई। लेकिन अब मैंन कभी सोचा नहीं था कि मुझे भी
कभी जिंदगी में ह्वाइट हाउस में जाने का अवसर आएगा। लेकिन जब मैं ह्वाइट हाउस गया,
एक बात ने मेरे दिल को छू लिया, और मैं ये कभी भूल नहीं सकता हूँ। बराक ने मुझे
एक किताब दी, वो किताब काफी
मेहनत करके खोज के लाए थे। और 1894 में वो किताब
प्रसिद्ध हुई थी। स्वामी विवेकानंद, जो मेरे जीवन की प्रेरणा हैं, वो शिकागो गए थे।
वर्ल्ड रिलीजन कांफ्रेंस में गए थे। और वर्ल्ड रिलीजन कांफ्रेंस में जो भाषण हुए
थे उसका वो कंपाइलेशन था। वो किताब खोज करके मेरे लिए लाए थे। यानि वो घटना मेरे
लिए दिल को छूने वाली थी। लेकिन उतना ही नहीं। उन्होंने वह किताब के पन्ने
खोल-खोल के, क्या – क्या उसमें लिखा है वो मुझे दिखाया। मतलब कि
वो पूरी किताब देख चुके थे। और इस गर्व के साथ मुझे कहा, कि मैं उस शिकागो से आता हूँ जहां स्वामी विवेकानंद आए थे।
ये बातें मेरे मन को बहुत छू गई थी। और मैं जीवन भर, मैं अपनी विरासत मानता हूँ। तो कभी ह्वाइट हाउस से दूर कहो
खड़े रह करके फोटो निकालना, और फिर कभी
ह्वाइट हाउस में जा करके, जिनके प्रति मेरी
श्रद्धा रही है, उनके जीवन की
किताब प्राप्त करना, आप कल्पना कर
सकते हैं कि दिल को कितना स्पर्श कर गया होगा।
बराक आपके लिए एक
प्रश्न है। लुधियाना, पंजाब से हिमानी,
प्रश्न आपके लिए है:
(माननीय राष्ट्रपति
श्री बराक ओबामा) : प्रश्न यह है कि "क्या आप दोनों ने कल्पना की थी कि आज
आप जिस पद पर पहुंचे हैं वे उस पर पहुंचने की कल्पना की थी?”
और यह रोचक प्रश्न
है। प्रधानमंत्री महोदय, आप बात कर रहे थे
कि जब आप पहली बार ह्वाइट हाउस देखने गए थे तो वहां बाहर से लोहे की फेंसिंग को
देख रहे थे। यह मेरे बारे में भी सच है। जब मैं पहली बार ह्वाइट हाउस गया तो मैं
उसी फेंस के बाहर खड़ा हो गया और देखने लगा तथा निश्चित रूप से कल्पना नहीं की कि
मैं कभी यहां आऊँगा और वहां रहने की कल्पाना तो बिल्कुल भी नहीं की। आपन जानते
हैं, मेरी समझ से हम दोनों को
ही बहुत साधारण शुरूआत के साथ असाधारण अवसर प्राप्तु हुआ है। और जब मैं यह सोचता
हूँ कि अमरीका में सबसे बढि़या क्या है और भारत में सबसे बढि़या क्या है,
तो यह धारणा कि जो चाय बेचने वाला है या मेरे
जैसा कोई व्यक्ति जो सिंगल मदर की कोख से पैदा हुआ है, हमारे देशों का नेतृत्व कर सकता है, उन अवसरों का एक असाधारण उदाहरण है जो हमारे देशों के अंदर
मौजूद हैं। अब मेरी समझ से, जिसने आपको और
मुझे प्रेरित किया है वह यह विश्वास है कि लाखों बच्चे ऐसे हैं जिनमें वही
क्षमता है परंतु हो सकता है कि उनके पास वही शिक्षा हो, हो सकता है कि उनको उसी तरह अवसर न मिल रहे हों, और इसलिए हमारा और सरकार का यह कार्य है कि जिन
युवाओं में प्रतिभा है और जिनमें क्षमता है तथा जो कार्य करने के इच्छुक हैं वे
सफल हों। और इसलिए हम स्कूल, उच्च शिक्षा पर
जोर दे रहे हैं। यह आश्वस्त करना कि बच्चे स्वस्थ हों और आश्वस्त करना कि
सभी पृष्ठभूमि के बच्चों, लड़कों एवं
लड़कियों, सभी धर्मों एवं नस्लों
के लोगों को ये अवसर उपलब्ध हों – इतना महत्वपूर्ण
है। क्योंकि आप कभी नहीं जानते कि भारत का अगला प्रधानमंत्री कौन हो सकता है,
या संयुक्त राज्य का अगला राष्ट्रपति कौन हो
सकता है। हो सकता है कि वे हमेशा सही पक्ष न देखते हों, और यदि आप उनको अवसर देंगे, तो उनका आश्चर्य ही होगा।
(माननीय
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी) : राष्ट्रपति बराक आपका धन्यवाद।
ये सवाल हिमानी
लुधियाना, पंजाब से मुझे भी पूछा है
कि क्या आपने कभी इस पद पर पहुंचेंगे इसकी कल्पना की थी?
जी नहीं कभी कल्पना
नहीं की थी। क्योंकि मैं तो जैसे बराक ने बताया बहुत ही सामान्य परिवार से आता
हूँ। लेकिन मैं बहुत लंबे अरसे से सबको ये कहता आया हूँ कि कुछ भी बनने के सपने
कभी मत देखो। अगर सपने देखने हैं तो कुछ करने के देखो। जब कुछ करते हैं तो संतोष
भी मिलता है और नया करने की प्रेरणा भी मिलती है। सिर्फ बनने के सपने देखते हैं और
नहीं बन पाते हैं तो सिवाय निराश कुछ हाथ नहीं लगता है। और इसीलिए मैंने जीवन में
कभी कुछ भी बनने का सपना देखा नहीं था। आज भी कुछ बनने के सपने दिमाग में हैं ही
नहीं। लेकिन कुछ करने के जरूर हैं। और भारत माता की सेवा करना, सवा सौ करोड़ देशवासियों की सेवा करना, इससे बड़ा सपना क्या हो सकता है। वही करना है।
मैं हिमानी का बहुत आभारी हूँ।
ओमप्रकाश का एक
प्रश्न है बराक के लिए। ओमप्रकाश जेएनयू में संस्कृत पढ़ रहे हैं। वह झुंझुनू,
राजस्थान के रहने वाले हैं। ओमप्रकाश जेएनयू
में संस्कृत अध्ययन के लिए विशेष केंद्रों के संयोजक हैं।
(माननीय राष्ट्रपति
श्री बराक ओबामा) : यह बहुत रोचक प्रश्न है। उनका प्रश्न है कि नई पीढ़ी के युवा
वैश्विक नागरिक हैं। वे समय या सीमाओं से बंधे नहीं हैं। ऐसी स्थिति में हमारे
नेतृत्व, सरकारों एवं पूरे समाज का
दृष्टिकोण क्या होना चाहिए।
मेरी समझ से यह
महत्वपूर्ण प्रश्न है। जब मैं इस पीढ़ी जो आ रही है, को देखता हूँ, वे विश्व के प्रति इस तरह एक्सपोज हो रहे हैं जिनकी आप और मैं शायद ही कल्पना
कर सकते हैं। शाब्दिक रूप में, दुनिया उनकी
अंगुली के पोरों पर है। अपने मोबाइल फोन का प्रयोग करके वे पूरी दुनिया से सूचना
एवं इमेज प्राप्त कर सकते हैं और यह असाधारण रूप से शक्तिशाली है। और मेरी समझ से
इसका अभिप्राय यह है कि सरकारें और नेता केवल टॉप डाउन रणनीति के माध्यम से शासन
करने का प्रयास नहीं कर सकते हैं। अपितु, वस्तुत: समावेशी ढंग से और खुले ढंग से तथा पारदर्शी ढंग से लोगों तक पहुंचना
होगा। और अपने देश की दिशा के बारे में नागरिकों के साथ बातचीत करनी होगी। और भारत
और संयुक्त राज्य के बारे में एक महान चीज यह है कि हम दोनों ही खुले समाज हैं।
और हमें पूरा भरोसा एवं विश्वास है कि जब नागरिकों के पास जानकारी होगी और जोशीले
वाद-विवाद होंगे, जो समय के साथ
हालांकि कभी-कभी लोकतंत्र निराश हो रहा है, सर्वोत्तम निर्णय एवं सबसे स्थिर समाज और सबसे समृद्ध समाज
उभरते हैं। और नए विचारों का निरंतर आदान – प्रदान हो रहा है और मेरी समझ से आज प्रौद्योगिकी इसे सुगम
बना रही है, न केवल देशों के
अंदर अपितु देश के बाहर भी। और इस प्रकार, मुझे भारत एवं संयुक्त राज्य में बहुत अधिक विश्वास है, जो ऐसे देश हैं जो सूचना पर आधारित खुले समाज
हैं तथा इस नए सूचना युग में सफल होने एवं आगे बढ़ने में समर्थ हैं; बंद समाजों की तुलना में जो उस सूचना पर
नियंत्रण करने का प्रयास करते हैं जो नागरिक प्राप्त करते हैं। क्योंकि अंतत: यह
अब संभव नहीं है। सूचना का प्रवाह किसी न किसी रूप में अवश्य होगा तथा हम यह आश्वस्त
करना चाहते हैं, हम एक स्वस्थ
वाद-विवाद को बढ़ावा दे रहे हैं तथा सभी लोगों के बीच अच्छे वार्तालाप को बढ़ावा
दे रहे हैं।
(माननीय
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी) : जो सवाल बराक से पूछा गया है, ओमप्रकाश चाहते हैं कि मैं भी उस विषय में कुछ
कहूँ।
बहुत ही अच्छा
जवाब बराक ने दिया है। प्रेरणादायक है। मैं इतना ही कहूँगा कि एक जमाने में,
खास करके कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रेरित
लोग थे। वे दुनिया में एक आह्वान करते थे। और वे कहते थे वर्क्स ऑफ दि वर्ल्ड
यूनाइट। दुनिया के मजदूर एक हो जाओ। ऐसा एक नारा कई दशक तक चलता रहा था। मैं समझता
हूँ, आज की युवा की जो शक्ति
है, आज की युवा की जो पहुंच
है, इसके देखते हुए मैं यही
कहूँगा कि यूथ, यूनाइट द वर्ल्ड।
युवको, दुनिया को एक करो। मैं
समझता हूँ, उनमें ये ताकत है और वे
कर सकते हैं।
अगला सवाल है
सी.ए. पिकाशु मुथा। ये मुंबई से पूछ रहे हैं। और उन्होंने मुझे पूछा है कि आप किस
अमरिकन नेता से प्रेरित हैं?
वैसे जब छोटे थे
तो कैनेडी की फोटो देखा करते थे हिंदुस्तान के अखबारों में। बड़ी इंप्रेसिव थी
उनकी पर्सनेल्टी। लेकिन आपका सवाल है कि किसने इंसपायर किया। मुझे बचपन में पढ़ने
का शौक था। और मुझे बेंजामिन फ्रेंकलिन का जीवन-चरित्र पढ़ने का अवसर मिला था।
उनका 1700 साल का समयकाल था। और वो
अमरिका के राष्ट्रपति नहीं थे लेकिन वो जीवन-चरित्र इतना प्रेरक है। एक व्यक्ति
अपने जीवन को बदलने के लिए समझदारी पूर्वक कैसे प्रयास करता है।
नींद ज्यादा आती
है तो नींद कम करने के तरीके क्या हो सकते हैं?
ज्यादा खाने का
मन करता है तो कम खाने की तरु जाना है तो कैसे जाना है?
काम करते-करते
अपने साथी लोग नाराज होते हैं, उनको लगता है कि
देखो ये कुछ करते ही नहीं हैं, मिलते ही नहीं
हैं। तो इस समस्या का समाधान कैसे करना है?
ऐसे-ऐसे
छोटे-छोटे विषयों को उन्होंने अपनी बायोग्रॉफी में लिखा है। और मैं तो हर एक को
कहता हूँ कि हमें बैंजामिन फ्रैंकलिन के जीवन-चरित्र को पढ़ना चाहिए। आज भी मुझे वो
प्रेरणा देता है। और बैंजामिन फ्रेंकलिन, उनका एक बहुआयामी व्यक्तित्व था। वे राजनीतिज्ञ थे, राजनीतिक विचारक थे, वो सामाजिक कार्यकर्ता थे, वो कूटनीतिज्ञ थे। और बहुत सामान्य परिवार से आए थे। पढ़ाई
भी पूरी नहीं हुई थी। लेकिन उन्होंने आज भी अमरीका के जीवन पर अपने विचारों की
छवि छोड़ी हुई है। मुझे उनका जीवन सचमुच प्रेरक लगा है। और मैं आपसे भी कहूँगा आप
भी अगर उनका जीवन-चरित्र पढ़ोगे, आपको अपने जीवन
को ट्रांसफॉम करना है, तो उसमें से रास्ता
दिखाते हैं, और बहुत
छोटी-छोटी बातों का सहारा लिया है। तो मैं मानता हूँ कि जितनी मुझे प्रेरणा मिली
है आपको भी मिलेगी।
मोनिका भाटिया का
बराक के लिए एक प्रश्न है। मोनिका भाटिया ने बराक से सवाल पूछा है।
(माननीय राष्ट्रपति
श्री बराक ओबामा) : प्रश्न है "दो प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के नेता के रूप
में काम पर बुरे दिन के अंत में आप किससे प्रेरित होते हैं और किस वजह से मुस्कराते
हैं?”
और यह बहुत अच्छा
प्रश्न है। मैं कभी – कभी कहता हूँ कि
मेरे सामने जो समस्याएं आती हैं जो ऐसी होती हैं जिन्हें कोई और हल नहीं कर सकता
है। यदि वे आसान प्रश्न होते, तो मेरे पास
पहुंचने से पहले उनको कोई और हल कर चुका होता। इस प्रकार, ऐसे दिन भी होते हैं जो बहुत कठिन एवं निराशाजनक होते हैं।
और यह विदेश मामलों में एक सच्चाई है। यह घरेलू मामलों में भी सच है। परंतु मैं
आपको बताना चाहता हूँ कि मुझे जो प्रेरित करता है और मुझे पता नहीं प्रधानमंत्री
महोदय आप इससे सहमत हैं या नहीं – लगभग हर रोज मेरी
मुलाकात किसी न किसी ऐसे व्यक्ति से होती है जो मुझे कहता है, ''आपने मेरे जीवन में फर्क ला दिया।''
इस प्रकार,
वे कहेंगे, ''आपने स्वास्थ्य देख-रेख का कानून पास कराया, मेरे बच्चे की जान बचाई जिसके पास स्वास्थ्य
बीमा नहीं था’’। और वे किसी
चिकित्सक से जांच कराने में समर्थ हुए और उन्होंने शुरूआती ट्यूमर का पता लगाया
तथा अब वह ठीक हो रहा है।
अथवा वे कहेंगे,
"आर्थिक संकट के दौरान आपने
मेरा घर बचाने में मेरी मदद की।”
अथवा वे कहेंगे,
"मैं कॉलेज का खर्च नहीं
उठा सकता था और आपने जो कार्यक्रम शुरू किया उसकी वजह से मैं विश्वविद्यालया जाने
में समर्थ हुआ हूँ।”
और कई बार आपको
वे ऐसी चीजों के लिए धन्यवाद दे रहे होते हैं जिसे आपने 4 या 5 साल पहले किया
था। कई बार वे आपको ऐसी चीजों के लिए धन्यवाद दे रहे होते हैं जिनके बारे में
आपको याद तक नहीं है, या आप उस दिन के
बारे में सोच नहीं रहे होते हैं। परंतु यह उसका स्मरण दिलाता है जिसे आपने पहले
कहा था, इसका अभिप्राय यह है कि
यदि आप केवल किसी पद पर बने रहने या सत्ता सुख भोगने के विपरीत काम करने पर ध्यान
देते हैं, तो आपको जो संतोष मिलता
है वह अतुलनीय होता है। और सेवा के बारे में अच्छी बात यह है कि हर कोई इसे कर
सकता है। यदि आप किसी की मदद कर रहे हैं, तो उससे आपको जो संतोष मिल सकता है वह मेरी समझ से ऐसी किसी चीज से अधिक है जो
आप कर सकते हैं। और आमतौर पर जिस वजह से मैं और काम करने के लिए प्रेरित होता हूँ
तथा चुनौतियों एवं कठिनाइयों का सामना करने में मुझे जिससे मदद मिलती है वह हम सभी
के पास है। क्योंकि हम स्पष्ट रूप से अकेले ऐसे व्यक्ति नहीं हैं जिनकों काम
पर बुरे दिनों का सामना करना पड़ता है। मेरी समझ से हर कोई जानता है कि काम पर
बुरा दिन होने का क्या मतलब होता है। आपको ऐसी स्थिति में भी अपना काम जारी रखना
होता है। अंतत: आप फर्क ला देते हैं।
(माननीय
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी) : सचमुच में बराक ने मन की बात कही है। कि हम भी
भले किसी पद पर क्यों न हों, हम भी इंसान हैं।
ऐसी छोटी-छोटी चीजें हमें प्रेरणा देती हैं। मेरा भी मन करता है, मैं एक घटना मेरे अपने जीवन की बताऊँ। मैं जीवन
में बहुत वर्षों तक एक प्रकार से परिव्राजक रहा। लोगों के घर में मुझे खाना मिलता
था। कोई जो मुझे बुलाता था वो मुझे खिलाता था। एक बार एक परिवार मुझे बार-बार कहता
था कि आप मेरे घर खाना खाने आइए, लेकिन मैं जाता
नहीं था। इसलिए नहीं जाता था कि वो एक बहुत गरीब परिवार था। और मुझे लगता था मैं
उनके यहां भोजन के लिए जाउँगा, तो उन पर बोझ बन
जाउँगा। लेकिन उनका प्यार इतना था, उनका आग्रह इतना था कि आखिरकार मुझे झुकना पड़ा। और मैा उनके घर भोजन के लिए
गया। जब भोजन के लिए हम बैठे, तो एक बहुत छोटी
झोपड़ी जैसी जगह थी। तो उन्होंने मुझे बाजरे की रोटी और दूध दिया। उनका छोटा बच्चा
उस दूध की ओर देख रहा था। ऐसा लगा कि जैसे उस बच्चे ने कभी दूध देखा नहीं है। तो
मैंने तुरंत वो दूध का कटोरा उस बच्चे को दे दिया। और उसने तुरंत पल दो पल में
उसका पी लिया। उसके घर के लोग बहुत नाराज हो गए थे कि उसने दूध क्यों पी लिया। और
मैंने अनुभव किया, कि उस बच्चे ने
शायद मां के दूध के सिवाए कभी भी दूध पिया नहीं होगा। और मुझे अच्छा खिलाने के
इरादे से वो दूध ले आए थे। इस बात ने मुझे इतनी प्रेरणा दी कि एक गरीब झुग्गी
झोपड़ी में रहने वाला व्यक्ति, मेरे लिए इतनी
चिंता करता है, तो मुझे अपना
जीवन ऐसे लोगों के लिए लगा देना चाहिए। तो यही बातें हैं जो प्रेरणा देती हैं। और
बराक ने भी बहुत ही, एक सामान्य मन
को क्या-क्या लगता है हमारे सामने बताया है।
मैं बराक का बहुत
आभारी हूँ, उन्होंने इतना समय दिया।
और मन की बात सुनने के लिए मैं देशवासियों का भी आभारी हूं। मैं जानता हूँ कि भारत
में रेडियो हर घर पहुंचा हुआ है, हर गली में
पहुंचा हुआ है। और ये रेडियो मन की बात, स्पेशल मन की बात, ये आवाज
हमेशा-हमेशा गूंजती रहेगी।
मुझे एक विचार
आया है, मैं आपके सामने रखता हूँ।
मेरी और बराक के बीच आज जो बात हुई है इसकी एक ई-बुक निकाली जाये। मैं चाहता हूँ
कि जो मन की बात को आर्गेनाइज करते हैं, ई-बुक निकालें। और मैं आपसे भी कहता हूँ कि आप जो श्रोताओं ने ये मन की बात
सुनी है, तो आप भी जरूर इसमें
पार्टिसिपेट कीजिए। और उसमें से जो बेस्ट हंड्रेड विचार मिलेंगे, उसको भी मेरी और बराक की इस किताब के साथ हम
जोड़ेंगे और एक ई-बुक निकालेंगे। और मैं चाहता हूँ कि आप लोग, ट्विटर हो, फेसबुक हो, ऑनलाइन कुछ लिखना
चाहते हैं, तो आप #YesWeCan, इस हैश टैग के साथ हमें लिखिए।
गरीबी उन्मूलन -
#YesWeCan
सबके लिए उत्तम
स्वास्थ्य देखरेख - #YesWeCan
शिक्षा से सशक्त
युवा - #YesWeCan
सबके लिए नौकरी -
#YesWeCan
आतंकवाद का खात्मका
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वैश्विक शांति
एवं प्रगति - #YesWeCan
मैं चाहता हूँ कि
इस टैग लाइन के साथ आप भी इस मन की बात सुनने के बाद अपने विचार, अपने अनुभव, अपनी भावना पहुंचाइए। उसमें से जो बेस्ट हंड्रेड होगी,
उसको हम सलेक्ट करेंगे, और मैंने और बराक ने जो बातें की हैं, उसकी किताब में उसको भी जोड़ देंगे। और मैं
मानता हूँ सच में कि हम सबके मन की बात बन जाएगी।
फिर एक बार बराक
का बहुत-बहुत आभार। आप सबका भी बहुत-बहुत आभार। और 26 जनवरी के इस पावन पर्व पर, बराक का यहां आना मेरे लिए बहुत गर्व की बात है, देश के लिए गर्व की बात है।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
A e-book for this special Episode of "Mann ki Baat" is available at http://mkbebook.narendramodi.in/
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